जिंदगी में ही बनाया अपना एवं पत्नी का स्मारक
रूढि़वाद से अलग हटकर
समाज में जीने की है तमन्ना
नक्सल प्रभावित
गया जिला के बांकेबाजार प्रखण्ड के ठाढ़ी पहाड़ के तलहटी में बसा जमुआरा कला गांव
के 70 वर्षीय भुनेश्वर विश्वकर्मा अपने जीवन काल में पांच काम पूरा करने संकल्प
लिया है। इस के तहत उन्होंने स्मारक बनाकर सपत्नीक दो प्रस्तर की मूर्ति रख चुके
हैं। उन्होंने बताया कि इस कार्य की कई ग्रामवासी और रिश्तेदार आलोचना भी करते है।
लेकिन इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है। हमने जो मन में ठाना है। धीरे- धीरे करने का
प्रयास कर रहें हैं। उन्होंने कहा कि 6-7 साल पहले मन में पाच काम करने का विचार
आया। जिसमें पाच आम का पेड़ लगाना, पोखर बनाना,
छोटे बच्चों को भोजन करने की निशुल्क व्यवस्था,
गरमी के दिनों में चार माह सार्वजनिक चैक
चैराहों पर ठंढ़ा पानी पिलाना तथा अपने जीवन में अपना ही स्मारक बनाना है। यही
नहीं कफन के पैसे भी सुरक्षित रहेगा। तीन काम कर चुके है। पोखर का निर्माण ठाढ़ी
पहाड़ के नीचे हो चुका है जिसमें प्रतिदिन हजारों पशु अपनी प्यास बुझा रहें है। आम
का पेड़ भी तैयार हो चुका है जो फल के साथ- साथ छाया दे रहा है। स्मारक भी बनकर
तैयार है।
श्री विश्वकर्मा
बताते हैं कि गांव के कुछ लोग हमें पागल के साथ न जाने क्या- क्या कहकर आलोचना
करते है। हिन्दू धर्म के विपरीत स्मारक बनाने के काम को मानते हैं। कुछ पंडित भी
इस कार्य को सही नहीं मानते है। लेकिन इस समबन्ध में उनके गुरु जो बंगाली ब्राह्मण
के साथ बड़े कर्मकाण्डी भी है ने मार्गदर्शन करते हुए बताया कि लोगों को सारा दान
या कार्य मरणोपरान्त नहीं अपने जीवन काल में ही कर लेना चाहिए। इसी के बाद
उन्होंने दो उजले पत्थर की मुर्तियां बनवाकर लाया और उसे स्मारक बनाकर रखे हुए
हैं। वे बताते हैं कि वे पाखण्ड और
पाखण्डियों से दूर रहना चाहते है। व्यवहारिक तौर पर जो अच्छा लगे उसे करना चाहते
हैं। आम एवं नारियल के फल को स्वंय के उपयोग के बाद आम लोगों में वितरण कर देते
हैं।
श्री विश्वकर्मा सिर्फ साक्षर हैं। कोलकाता में उनकी पारंपरिक फर्नीचर की दुकान है। जो उनके पुत्र द्वारा संचालित हैं। ये अब गांव पर रहकर खेती और बिल्डिंग कंस्ट्रक्शन का काम देखते हैं लेकिन कोलकाता प्रायः आना जाना लगा रहता है। उन्हें अपने कारोबार का हुनर है और अपने काम को वे बखुबी निभाते हैं। फिलहाल वे दो छुटे हुए काम बाल-भोजन और ठंढ़ा पानी पिलाने के लिए प्रयासरत हैं। वे बताते हैं कि इस कार्य में बेटा - बहु, बेटी -दामाद और सारे परिवार का सहयोग है। तीन पुत्र और तीन पुत्रियों के साथ भरा पूरा परिवार एक ही क्षत के नीचे रहते हैं। घर का एक भी परिवार विरोध नहीं करता है। पत्नी रामपति देवी ग्रामीण माहौल में रहकर भी हमें साथ दी है। जिसके कारण आलोचना करने वालों की भी मुॅह बंद सी हो गई है। इस प्रकार एक ओर लोग जहां मौत से डरते हैं। दाह संस्कार या मरणोपरान्त उपयोग में लाने वाली वस्तु को घर में रखना या लाना अशुभ मानते हैं वहीं श्री विश्वकर्मा अपने घर के दरबाजे पर स्मारक बनाकर मूर्ति रख चुके हैं। विश्वकर्मा का मानना है कि इस प्रकार की सोच अंधविष्वास का द्योतक है। उनका स्पष्ट मत है कि मनुष्य को सभी काम अपने जीवन काल में कर लेना चाहिए, मरनोपरान्त नहीं। इधर ग्रामीण रामप्रवेश विश्वकर्मा, विष्वनाथ प्रसाद यादव बताते हैं कि शुरूआती दौर में जब मूर्ति लेकर आए थे तो गांव के लोग कई प्रकार की बातें करते थे लेकिन अब धीरे- धीरे समान्य हो गया है। हालांकि धर्म के आड़ में आज भी कुछ आलोचना होती है।
-- कौशलेन्द्र कुमार